BJP के नए अध्यक्ष की रेस में ये 2 चेहरे सबसे आगे

नई दिल्लीः लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को उम्मीद से कम सीटें मिली। पार्टी ने इस चुनाव में 300 से अधिक सीटें जीतने का टारगेट रखा था। लेकिन पार्टी को 240 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। पार्टी को बंगाल, यूपी, राजस्थान और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। हालांकि तेलंगाना और उड़ीसा में बीजेपी को भारी वोट मिले। इसी की बदौलत पार्टी 240 तक पहुंच पाई। बंगाल में पार्टी ने पोलराइजेशन की राजनीति की लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। पार्टी बंगाल में सीएए और एनआरसी को लेकर जो माहौल बना उसका फायदा नहीं उठा पाई।

बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं। पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर जीत मिली थी। यह पार्टी का अब तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। 2014 के चुनाव में पार्टी को मात्र 2 सीटें मिली थीं। पार्टी ने 2 से लेकर 18 तक सफर मात्र 5 वर्षों में तय किया। इस दौरान पार्टी के अध्यक्ष थे दिलीप घोष। 2014 के बाद से पार्टी में टीएमसी के कई नेता शामिल हुए। ऐसे में अब यहां पार्टी दो खेमों में बंट गई है। एक तो टीएमसी से आने वाले नेताओं वाला खेमा है जिसकी अगुवाई शुभेंदु अधिकारी कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर बीजेपी के नेताओं का नेतृत्व दिलीप घोष कर रहे हैं। दोनों नेताओं में अनबन है आपस में नहीं बनती।

बीजेपी ने 2021 में सुकांत मजूमदार को पार्टी का अध्यक्ष बनाया। लेकिन 2024 के चुनाव में पार्टी को मात्र 12 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इस चुनाव में पार्टी ने सीएए और एनआरसी को बड़ा मुद्दा बनाया था लेकिन हिंदू वोटर्स का धुवीकरण करने में बीजेपी सफल नहीं हो पाई। उल्टे मुस्लिम वोटर्स जो घर से नहीं निकलते थे उनको भी वोट करने के लिए निकलना पड़ा। उनके मन में डर था कि एनआरसी के प्रावधानों से उन्हें देश से बाहर निकाल दिया जाएगा। उधर बहुसंख्यक आबादी बीजेपी पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए घरों से नहीं निकली। इसका नुकसान भी पार्टी को हुआ। जिन क्षेत्रों में पार्टी का जनाधार बढ़ा था वहां पर भी कार्यकर्ता पार्टी से दूर हो गए।

Advertisement Space

कौन बनेगा अगला अध्यक्ष?

दिलीप घोष: लोकसभा चुनाव में लचर प्रदर्शन को देखते हुए पार्टी एक बार फिर दिलीप घोष को अध्यक्ष बना सकती है। उनके अध्यक्ष बनने की एक संभावना यह भी है क्योंकि वे आरएसएस के करीबी है। पहले भी उन्हें आरएसएस के करीबी होने का इनाम मिला था। लेकिन वह दौर अलग था। तब पार्टी प्रदेश में जमीन तलाश रही थी लेकिन इस बार जमीन को बचाने का समय है। वहीं संघ के नेताओं के साथ बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व अपने आप को असहज महसूस करता है। ऐसे में यह आरएसएस की छवि वाले पूर्व अध्यक्ष मोदी-शाह की रणनीति में कैसे सेट हो पाएंगे यह देखने वाली बात होगी। इस बार पार्टी ने उनको मेदिनीपुर की बजाय बर्धमान-दुर्गापुर से लड़ाया और वे चुनाव हार गए। उनको कीर्ति आजाद ने 1 लाख के अधिक अतंर से पराजित किया।

जगन्नाथ सरकार: बीजेपी मतुआ समुदाय से आने वाले जगन्नाथ सरकार को भी अध्यक्ष बना सकती है। बीजेपी के सीएए लागू करने पर सबसे ज्यादा फायदा मतुआ समुदाय को हुआ था। ऐसे में पार्टी की कोशिश है कि वे 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इस समुदाय को लामबंद कर सके। दिलीप घोष की तरह जगन्नाथ सरकार भी संघ के कार्यकर्ता रह चुके हैं। भाजपा के अध्यक्ष रहते हुए भी उन्होंने पार्टी को मजबूत किया था। मतुआ समुदाय प्रदेश का बड़ा वोट बैंक है। पार्टी की कोशिश है कि 2026 के चुनाव से पहले प्रदेश के 23 प्रतिशत एससी वोटर्स को अपने पाले में करना। जगन्नाथ भी फिलहाल रानाघाट से सांसद हैं।

ज्योतिर्मय सिंह महतो: एसटी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले ज्योतिर्मय सिंह पुरुलिया लोकसभा सीट से जीतकर संसद पहुंचे। महतो कुर्मी बहुल समुदाय से आते हैं। इस समुदाय का बिष्णुपुर, मदिनीपुर, पुरुलिया और झारग्राम जैसी सीटों पर प्रभाव ज्यादा है। वहीं ये भी आरएसएस की पृष्ठभूमि से आते हैं और युवाओं में सबसे अधिक लोकप्रिय है।

Add a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Keep Up to Date with the Most Important News

By pressing the Subscribe button, you confirm that you have read and are agreeing to our Privacy Policy and Terms of Use
Advertisement Space

You cannot copy content of this page